Wednesday, November 19, 2008

छिपकलियां


सफेद धुली दीवार पर

बैठी है छिपकली

घात लगाए

और

सफेद धुली पोशाकों में भी

कुछ छिपकलियां

घात लगाए,

मौकों की तालाश में......

.........सैंकड़ों पतंगे

हर दिन होते शहीद

शहीद हो जाती हैं

खुद भी ये छिपकलियां

क्योंकि

सफेद धुली पोशाकों में

घात लगाती

ये सिर्फ मौके तालाश करती हैं

पतंगों और छिपकलियों में

भेद नहीं रखती............

और

सफेद धुली दीवार पर बैठी

छिपकली से

अलग हो जाती है।

1 comment:

विजय ठाकुर said...

ये वर्ड वेरिफिकेशन का झंझट हटा लें. बड़ी कोफ्त होती है टिपण्णी करने वालों को.
स्वागत है ब्लॉग जगत में आपका