Thursday, November 20, 2008

कविता......

तुम्हीं हार रहे हो.....



तुम्ही हार रहे हो।

मैं तो अभी भी हूं सशक्त।

विनम्र प्रार्थना को,

भीख बना देने की नीचता,

तुम्हीं ने की-

मैं तो अब भी,

तुम्हारे तिरस्कार को,

माफ कर पाने में हूं सक्षम।

आज भी कह रहा हूं तुम्हें,

सर्वसक्षम सर्वशक्तिमान

और, तुम्हीं झुठला रहे हो,

अपना ईश्वर होना।

मैने तब भी इंसान होकर लगाई थी गुहार,

और अब भी

इंसान होकर

स्वीकार कर ली है हार।

7 comments:

!!अक्षय-मन!! said...

SUNDAR BHAVNAYE...........

Unknown said...

आपका स्वागत है, कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें यह बाधा उत्पन्न करता है… आपको शुभकामनायें

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

koi hare nahin sab jeete. narayan narayan

sandy said...

BAHUT SUNDAR. BADHAI HO ETNI SUNDAR KAVITA KE LIYE.

अभिषेक मिश्र said...

Naye kaviyon aur unki rachnaon se parichit karane ka acha pryas arambh kiya hai apne. Shubhkamnayein.

संगीता पुरी said...

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है। आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी बडी प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त करेंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है ।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल,शेर आदि के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पारिवारिक पत्रिका भी देखें
www.zindagilive.blogspot.com