Saturday, November 22, 2008

कविता

यूं ही नहीं मिल जाते हैं स्वप्न...........

कविता
ज़िन्दगी यूं ही 

तोहफों से नहीं नवाज़ेगी,

हर मोड़

यूं ही नहीं मिल जाएंगे स्वप्न।

मायूसियों की चादर ओढ़,

ख़ुद पर दया करते,

क्या फेर पाओगे किस्मत का पहिया?

बेचारगी की चोगे में,

मिलेगा आसमान?

उठ!

घुटनों पर सिर रखने वाले,

और जी डाल संपूर्ण जीवन,

कण्टकों से भरा संपूर्ण जीवन।

5 comments:

Sanjeev Mishra said...

atyant sundar kavita hai.
dhanyvad evam sadhuvaad is prernaspad krati ke liye.


www.trashna.blogspot.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

adbhut bhaai...........!!

ताऊ रामपुरिया said...

उठ!
घुटनों पर सिर रखने वाले,
और जी डाल संपूर्ण जीवन,
कण्टकों से भरा संपूर्ण जीवन।


वाह बेहद उत्साह से सरोबार रचना ! लाजवाब !
रामराम !

कडुवासच said...

बेचारगी की चोगे में,

मिलेगा आसमान?
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।

अजेय said...

main uth hi gaya hoon.....batao jeena kaise hai?